श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 15: सुसंस्कृत मनुष्यों के लिए उपदेश  »  श्लोक 29
 
 
श्लोक  7.15.29 
 
 
यथा वार्तादयो ह्यर्था योगस्यार्थं न बिभ्रति ।
अनर्थाय भवेयु: स्म पूर्तमिष्टं तथासत: ॥ २९ ॥
 
अनुवाद
 
  जैसे व्यवसायिक कार्यकलाप या व्यवसाय में होने वाले लाभ आध्यात्मिक उन्नति में सहायक नहीं होते हैं अपितु भौतिक बंधन का कारण बनते हैं, ठीक उसी प्रकार वैदिक कर्मकांड उस व्यक्ति की सहायता नहीं कर सकते जो भगवान के प्रति समर्पित नहीं है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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