श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 15: सुसंस्कृत मनुष्यों के लिए उपदेश  »  श्लोक 28
 
 
श्लोक  7.15.28 
 
 
षड्‌‌वर्गसंयमैकान्ता: सर्वा नियमचोदना: ।
तदन्ता यदि नो योगानावहेयु: श्रमावहा: ॥ २८ ॥
 
अनुवाद
 
  अनुष्ठान-कर्मकांड, नियम-विधान, तपस्या और योगाभ्यास -- ये सब इंद्रियों और मन को नियंत्रण में लाने के लिए किए जाते हैं, परंतु इंद्रियों और मन को नियंत्रण में कर लेने के बाद भी यदि भगवान का ध्यान नहीं किया जाता तो ये सभी कार्य सिर्फ निष्फल श्रम ही कहलाएंगे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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