श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 15: सुसंस्कृत मनुष्यों के लिए उपदेश  »  श्लोक 26
 
 
श्लोक  7.15.26 
 
 
यस्य साक्षाद्भ‍गवति ज्ञानदीपप्रदे गुरौ ।
मर्त्यासद्धी: श्रुतं तस्य सर्वं कुञ्जरशौचवत् ॥ २६ ॥
 
अनुवाद
 
  गुरु को सीधे भगवान ही मानना चाहिए क्योंकि वह ज्ञान देता है जो आध्यात्मिकता की ओर ले जाता है। इसीलिए जो लोग गुरु को सामान्य इंसान समझते हैं, उनके लिए सब कुछ बेकार ही जाता है। उनकी ज्ञानवृद्धि, उनका वैदिक अध्ययन और ज्ञान, झील में हाथी के नहाने जैसा है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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