मनुष्य को चाहिए कि अन्य जीवों के कारण होने वाले दुखों का प्रतिकार अच्छे आचरण (सदाचार) तथा ईर्ष्या से रहित होकर करे, भाग्य द्वारा प्रदत्त कष्टों का सामना समाधि में ध्यान लगाकर करे और शरीर तथा मन से उत्पन्न दुखों का प्रतिकार हठ योग, प्राणायाम आदि के अभ्यास द्वारा करे। इसी प्रकार विशेष रूप से सतोगुण का विकास करके खाने के मामले में, नींद पर विजय प्राप्त की जाये।