सदा सन्तुष्टमनस: सर्वा: शिवमया दिश: ।
शर्कराकण्टकादिभ्यो यथोपानत्पद: शिवम् ॥ १७ ॥
अनुवाद
जिसके पाँवों में उचित जूते हों उसे कंकड़, पत्थर और काँटों पर चलने में भी कोई खतरा नहीं होता। उसके लिए हर चीज़ शुभ होती है। ठीक उसी प्रकार, जो व्यक्ति हमेशा आत्म-संतुष्ट रहता है, उसे दुख नहीं सताते; वस्तुतः, वह हर जगह खुशी महसूस करता है।