जो संतुष्ट और प्रसन्नचित्त होता है साथ ही हर हृदय में वास कर रहे परम पुरुष ईश्वर के साथ अपने कर्मो को जोड़ता है, वो बिना जीविका के प्रयासों से ही परमात्मा के सुख का आनंद लेता है। वहीं, एक भौतिकवादी मनुष्य के लिए ऐसा सुख और कहाँ है जो वासना और लालच से प्रेरित होता है और धन इकट्ठा करने की चाहत में हर दिशा में भटकता रहता है?