श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 15: सुसंस्कृत मनुष्यों के लिए उपदेश  »  श्लोक 12
 
 
श्लोक  7.15.12 
 
 
विधर्म: परधर्मश्च आभास उपमा छल: ।
अधर्मशाखा: पञ्चेमा धर्मज्ञोऽधर्मवत्त्यजेत् ॥ १२ ॥
 
अनुवाद
 
  अधर्म की पाँच शाखाएँ हैं, उन्हें विधर्म, परधर्म, आभास, उपधर्म और छल धर्म के नाम से जाना जाता है। जो व्यक्ति वास्तविक धार्मिक जीवन से अवगत है उसे इन पाँचों का त्याग करना चाहिए क्योंकि ये सभी अधर्म हैं।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.