श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 15: सुसंस्कृत मनुष्यों के लिए उपदेश  »  श्लोक 1
 
 
श्लोक  7.15.1 
 
 
श्रीनारद उवाच
कर्मनिष्ठा द्विजा: केचित्तपोनिष्ठा नृपापरे ।
स्वाध्यायेऽन्ये प्रवचने केचन ज्ञानयोगयो: ॥ १ ॥
 
अनुवाद
 
  नारद मुनि ने कहा: हे राजन्, कुछ ब्राह्मण सकाम कर्मों में बहुत ज्यादा लिप्त रहते हैं, कुछ तपस्याओं और यज्ञों में और कुछ वैदिक साहित्य के अध्ययन में तो कुछ (भले ही बहुत कम ही क्यों न हों) ज्ञान प्राप्त करते हैं और विभिन्न योगों का, खास तौर पर भक्ति योग का अभ्यास करते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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