श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 13: सिद्ध पुरुष का आचरण  »  श्लोक 6
 
 
श्लोक  7.13.6 
 
 
नाभिनन्देद् ध्रुवं मृत्युमध्रुवं वास्य जीवितम् ।
कालं परं प्रतीक्षेत भूतानां प्रभवाप्ययम् ॥ ६ ॥
 
अनुवाद
 
  चूँकि भौतिक देह का नाश होना निश्चित है और मनुष्य की आयु स्थिर नहीं है, इसलिए न तो मृत्यु की प्रशंसा करनी चाहिए और न ही जीवन की। इसके बदले, मनुष्य को शाश्वत समय तत्व पर ध्यान देना चाहिए, जिसमें जीव स्वयं को प्रकट करता है और विलीन हो जाता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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