श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 13: सिद्ध पुरुष का आचरण  »  श्लोक 46
 
 
श्लोक  7.13.46 
 
 
श्रीनारद उवाच
धर्मं पारमहंस्यं वै मुने: श्रुत्वासुरेश्वर: ।
पूजयित्वा तत: प्रीत आमन्‍त्र्यप्रययौ गृहम् ॥ ४६ ॥
 
अनुवाद
 
  नारद मुनि ने आगे कहा: साधु के इन उपदेशों को सुनकर असुरों के राजा प्रह्लाद महाराज ने पूर्ण संत (परमहंस) के वृत्ति संबंधी कर्तव्यों को समझ लिया। तत्पश्चात उन्होंने उस साधु की विधिपूर्वक पूजा की और उससे अनुमति लेकर अपने घर के लिए प्रस्थान किया।
 
 
इस प्रकार श्रीमद् भागवतम के स्कन्ध सात के अंतर्गत तेरहवाँ अध्याय समाप्त होता है ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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