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श्रीमद् भागवतम
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अध्याय 13: सिद्ध पुरुष का आचरण
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श्लोक 45
श्लोक
7.13.45
स्वात्मवृत्तं मयेत्थं ते सुगुप्तमपि वर्णितम् ।
व्यपेतं लोकशास्त्राभ्यां भवान्हि भगवत्पर: ॥ ४५ ॥
अनुवाद
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प्रह्लाद महाराज, निःसंदेह आप एक आत्मज्ञानी आत्मा और भगवान के भक्त हैं। आप न तो लोगों की राय की परवाह करते हैं और न ही दिखावटी शास्त्रों की। इसलिए मैंने बिना किसी झिझक के आपको अपने आत्म-साक्षात्कार का इतिहास सुना दिया।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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