श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 13: सिद्ध पुरुष का आचरण  »  श्लोक 44
 
 
श्लोक  7.13.44 
 
 
आत्मानुभूतौ तां मायां जुहुयात्सत्यद‍ृङ्‍मुनि: ।
ततो निरीहो विरमेत् स्वानुभूत्यात्मनि स्थित: ॥ ४४ ॥
 
अनुवाद
 
  विद्वान विचारशील व्यक्ति को यह जानना आवश्यक है कि भौतिक दुनिया मात्र मोह है, किंतु यह बोध केवल आत्म-साक्षात्कार के माध्यम से ही संभव है। ऐसे आत्म-साक्षात्कारी व्यक्ति को, जिसने प्रत्यक्ष रूप से सत्य को देखा है, आत्म-साक्षात्कार होने के कारण समस्त भौतिक गतिविधियों से संन्यास ले लेना चाहिए।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.