नाहं निन्दे न च स्तौमि स्वभावविषमं जनम् ।
एतेषां श्रेय आशासे उतैकात्म्यं महात्मनि ॥ ४२ ॥
अनुवाद
लोग-बाग अलग-अलग स्वभाव के होते हैं, इसलिए उनकी प्रशंसा करना या बुराई करना मेरा काम नहीं है। मैं तो इस उम्मीद के साथ उनके कल्याण की कामना करता हूं कि वे एक दिन परमात्मा कृष्ण के साथ मिल जाएंगे।