श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 13: सिद्ध पुरुष का आचरण  »  श्लोक 41
 
 
श्लोक  7.13.41 
 
 
क्व‍चित्स्‍नातोऽनुलिप्ताङ्ग: सुवासा: स्रग्व्यलङ्‌कृत: ।
रथेभाश्वैश्चरे क्व‍ापि दिग्वासा ग्रहवद्विभो ॥ ४१ ॥
 
अनुवाद
 
  हे मेरे प्रभु, कभी-कभी मैं स्नान करके पूरे शरीर पर चंदन लगाता हूं, फूलों की माला पहनता हूं और अच्छे वस्त्र और जेवर पहनता हूं। फिर मैं राजा की तरह हाथी की पीठ पर या रथ या घोड़े पर सवार होकर घूमता हूं। लेकिन कभी-कभी मैं भूत-प्रेत से ग्रस्त व्यक्ति की तरह नंगे बदन घूमता हूं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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