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श्लोक 37
श्लोक
7.13.37
अनीह: परितुष्टात्मा यदृच्छोपनतादहम् ।
नो चेच्छये बह्वहानि महाहिरिव सत्त्ववान् ॥ ३७ ॥
अनुवाद
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मैं किसी भी चीज़ को पाने के लिए प्रयास नहीं करता हूँ, बल्कि जो कुछ भी अपने आप मिल जाता है, उसी से संतुष्ट रहता हूँ। अगर कुछ नहीं मिलता, तो मैं अजगर की तरह शांत रहता हूँ, धैर्य रखता हूँ और कई-कई दिनों तक पड़ा रहता हूँ।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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