श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 13: सिद्ध पुरुष का आचरण  »  श्लोक 36
 
 
श्लोक  7.13.36 
 
 
विराग: सर्वकामेभ्य: शिक्षितो मे मधुव्रतात् ।
कृच्छ्राप्तं मधुवद्वित्तं हत्वाप्यन्यो हरेत्पतिम् ॥ ३६ ॥
 
अनुवाद
 
  मधुमक्खी से मैंने ये ज्ञान लिया है कि धन जमा करने की इच्छा को कैसे दूर रखना चाहिए, क्योंकि पैसे चाहे शहद जितने ही अच्छे हों, किंतु वे किसी के भी स्वामी को मारकर पैसे ले जा सकते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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