श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 13: सिद्ध पुरुष का आचरण  »  श्लोक 35
 
 
श्लोक  7.13.35 
 
 
मधुकारमहासर्पौ लोकेऽस्मिन्नो गुरूत्तमौ ।
वैराग्यं परितोषं च प्राप्ता यच्छिक्षया वयम् ॥ ३५ ॥
 
अनुवाद
 
  मधुमक्खी और अजगर दो महान आध्यात्मिक गुरु हैं जो हमें यह सिखाते हैं कि कैसे कम से कम इकट्ठा करके संतुष्ट रहा जा सकता है और एक ही स्थान पर कैसे स्थिर रहा जा सकता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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