श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 13: सिद्ध पुरुष का आचरण  »  श्लोक 32
 
 
श्लोक  7.13.32 
 
 
पश्यामि धनिनां क्लेशं लुब्धानामजितात्मनाम् ।
भयादलब्धनिद्राणां सर्वतोऽभिविशङ्किनाम् ॥ ३२ ॥
 
अनुवाद
 
  ब्राह्मण ने आगे कहा: मैं सचमुच देख रहा हूँ कि अपनी इन्द्रियों के वशीभूत हुआ एक धनी व्यक्ति किस तरह धन संचित करने का अत्यन्त लोभी होता है। अतः सम्पत्ति और ऐश्वर्य होते हुए भी चारों ओर से भय के कारण वह अनिद्रा रोग का शिकार बन जाता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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