श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 13: सिद्ध पुरुष का आचरण  »  श्लोक 30
 
 
श्लोक  7.13.30 
 
 
देहादिभिर्दैवतन्त्रैरात्मन: सुखमीहत: ।
दु:खात्ययं चानीशस्य क्रिया मोघा: कृता: कृता: ॥ ३० ॥
 
अनुवाद
 
  जीव सुख प्राप्त करना चाहता है और दुखों के कारणों से दूर रहना चाहता है, किन्तु जीवों के शरीर प्रकृति के पूर्ण नियंत्रण में होते हैं, अतः वे विभिन्न शरीरों के लिए जो भी योजनाएँ बनाते हैं वे अन्ततः व्यर्थ हो जाती हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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