श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 13: सिद्ध पुरुष का आचरण  »  श्लोक 3
 
 
श्लोक  7.13.3 
 
 
एक एव चरेद्भ‍िक्षुरात्मारामोऽनपाश्रय: ।
सर्वभूतसुहृच्छान्तो नारायणपरायण: ॥ ३ ॥
 
अनुवाद
 
  आत्मतुष्ट संन्यासी को द्वार-द्वार भीख मांगकर जीवन व्यतीत करना चाहिए। किसी भी व्यक्ति या स्थान पर निर्भर न रहते हुए उन्हें सभी प्राणियों का मित्र होना चाहिए और नारायण का शांत, अनन्य भक्त होना चाहिए। इस प्रकार उन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान में विचरण करना चाहिए।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.