इस प्रकार शरीर के अंदर रहने वाली आत्मा अपने हित को भूल जाती है क्योंकि वह अपनी पहचान शरीर से बनाने लगती है। क्योंकि शरीर भौतिक होता है, इसलिए उसका स्वाभाविक झुकाव भौतिक दुनिया की विविधताओं की ओर होता है। इस तरह जीवन इकाई भौतिक अस्तित्व के दुखों को भोगती है।