श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 13: सिद्ध पुरुष का आचरण  »  श्लोक 27
 
 
श्लोक  7.13.27 
 
 
सुखमस्यात्मनो रूपं सर्वेहोपरतिस्तनु: ।
मन:संस्पर्शजान् द‍ृष्ट्वा भोगान्स्वप्स्यामि संविशन् ॥ २७ ॥
 
अनुवाद
 
  जीवों के लिए जीवन का वास्तविक स्वरूप आध्यात्मिक सुख का है और यही सच्चा सुख है। इस सुख को तभी प्राप्त किया जा सकता है जब मनुष्य सारे भौतिकतावादी कार्यकलापों को बंद कर दे। भौतिक इन्द्रियभोग मात्र एक कल्पना मात्र है, इसलिए इस विषय पर विचार करके मैंने सारे भौतिक कार्यकलाप बंद कर दिए हैं और अब यहाँ लेटा हुआ हूँ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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