श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 13: सिद्ध पुरुष का आचरण  »  श्लोक 25
 
 
श्लोक  7.13.25 
 
 
यद‍ृच्छया लोकमिमं प्रापित: कर्मभिर्भ्रमन् ।
स्वर्गापवर्गयोर्द्वारं तिरश्चां पुनरस्य च ॥ २५ ॥
 
अनुवाद
 
  विकास प्रक्रिया के दौरान, जो अवांछनीय सांसारिक सुखों हेतु किए गए कर्मों के कारण उत्पन्न होती है, मुझे मनुष्य योनि मिली है, जो स्वर्गलोक, मोक्ष, निम्न योनियों या मानव जन्मों में पुनर्जन्म तक ले जा सकती है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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