तथापि ब्रूमहे प्रश्नांस्तव राजन्यथाश्रुतम् ।
सम्भाषणीयो हि भवानात्मन: शुद्धिमिच्छता ॥ २३ ॥
अनुवाद
हे राजन्, आप तो सब कुछ जानते ही हैं, फिर भी आपने कुछ प्रश्न पूछे हैं, अतः जैसा मैंने गुरुजनों से सुनकर सीखा है, उसके अनुसार ही उनका उत्तर देने का प्रयास करूँगा। इस विषय में चुप रहना मेरे लिए असंभव है क्योंकि जो आत्म-शुद्धि की इच्छा रखता है, उसके लिए आप जैसे व्यक्ति से संवाद करना ही श्रेष्ठ है।