कवि: कल्पो निपुणदृक् चित्रप्रियकथ: सम: ।
लोकस्य कुर्वत: कर्म शेषे तद्वीक्षितापि वा ॥ १९ ॥
अनुवाद
मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि महाराज आप विद्वान, कुशल और हर प्रकार से बुद्धिमान हैं। आप अति सुंदरता से बोलते हैं, आपके शब्द दिल को भाते हैं। आप देख रहे हैं कि सब लोग सकाम कर्म में लगे हुए हैं। फिर भी आप यहां निष्क्रिय पड़े हुए हैं।