श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 13: सिद्ध पुरुष का आचरण  »  श्लोक 18
 
 
श्लोक  7.13.18 
 
 
न ते शयानस्य निरुद्यमस्य
ब्रह्मन्नु हार्थो यत एव भोग: ।
अभोगिनोऽयं तव विप्र देह:
पीवा यतस्तद्वद न: क्षमं चेत् ॥ १८ ॥
 
अनुवाद
 
  हे बुद्धिमान ब्राह्मण, तुम कुछ नहीं करते और इसी कारण तुम लेटे हुए हो। यह बात तो समझ आती है कि तुम्हारे पास भोग-विलास के लिए धन नहीं है। तो फिर तुम्हारा शरीर इतना भरा-पूरा कैसे हो गया? ऐसी परिस्थिति में यदि तुम मेरे प्रश्न को उचित मानते हो तो कृपा करके समझाओ कि यह कैसे संभव हुआ?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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