न ते शयानस्य निरुद्यमस्य
ब्रह्मन्नु हार्थो यत एव भोग: ।
अभोगिनोऽयं तव विप्र देह:
पीवा यतस्तद्वद न: क्षमं चेत् ॥ १८ ॥
अनुवाद
हे बुद्धिमान ब्राह्मण, तुम कुछ नहीं करते और इसी कारण तुम लेटे हुए हो। यह बात तो समझ आती है कि तुम्हारे पास भोग-विलास के लिए धन नहीं है। तो फिर तुम्हारा शरीर इतना भरा-पूरा कैसे हो गया? ऐसी परिस्थिति में यदि तुम मेरे प्रश्न को उचित मानते हो तो कृपा करके समझाओ कि यह कैसे संभव हुआ?