श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 13: सिद्ध पुरुष का आचरण  »  श्लोक 16-17
 
 
श्लोक  7.13.16-17 
 
 
बिभर्षि कायं पीवानं सोद्यमो भोगवान्यथा ॥ १६ ॥
वित्तं चैवोद्यमवतां भोगो वित्तवतामिह ।
भोगिनां खलु देहोऽयं पीवा भवति नान्यथा ॥ १७ ॥
 
अनुवाद
 
  तपस्वी को बहुत मोटा देखकर प्रह्लाद महाराज ने कहा: श्रीमान, आप अपनी जीविका चलाने के लिए कोई भी काम नहीं करते, इसके बावजूद आपका स्वस्थ शरीर एक भोग-विलासी व्यक्ति के समान सुदृढ़ है। मुझे पता है कि यदि कोई बहुत धनाढ्य हो और उसे कुछ करना न हो, तो वो सिर्फ खाकर, सोकर और कोई काम न करके काफी मोटा अवश्य हो जाता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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