श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 13: सिद्ध पुरुष का आचरण  »  श्लोक 15
 
 
श्लोक  7.13.15 
 
 
तं नत्वाभ्यर्च्य विधिवत्पादयो: शिरसा स्पृशन् ।
विवित्सुरिदमप्राक्षीन्महाभागवतोऽसुर: ॥ १५ ॥
 
अनुवाद
 
  महाभागवत प्रह्लाद महाराज ने उस साधु पुरुष की पूजा की जिसने अजगर-वृत्ति अपना रखी थी। पूजा करने के पश्चात् और उसके चरणकमलों को अपने सिर पर रखकर प्रह्लाद महाराज ने उस साधु को समझने के उद्देश्य से विनम्रता से पूछा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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