तं नत्वाभ्यर्च्य विधिवत्पादयो: शिरसा स्पृशन् ।
विवित्सुरिदमप्राक्षीन्महाभागवतोऽसुर: ॥ १५ ॥
अनुवाद
महाभागवत प्रह्लाद महाराज ने उस साधु पुरुष की पूजा की जिसने अजगर-वृत्ति अपना रखी थी। पूजा करने के पश्चात् और उसके चरणकमलों को अपने सिर पर रखकर प्रह्लाद महाराज ने उस साधु को समझने के उद्देश्य से विनम्रता से पूछा।