श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 13: सिद्ध पुरुष का आचरण  »  श्लोक 14
 
 
श्लोक  7.13.14 
 
 
कर्मणाकृतिभिर्वाचा लिङ्गैर्वर्णाश्रमादिभि: ।
न विदन्ति जना यं वै सोऽसाविति न वेति च ॥ १४ ॥
 
अनुवाद
 
  लोग उस महात्मा के काम, उसके लक्षण, उसकी बात और उसके वर्णाश्रम धर्म से यह नहीं समझ पाए कि वह वही था जिसे वे जानते थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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