श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 13: सिद्ध पुरुष का आचरण  »  श्लोक 12-13
 
 
श्लोक  7.13.12-13 
 
 
तं शयानं धरोपस्थे कावेर्यां सह्यसानुनि ।
रजस्वलैस्तनूदेशैर्निगूढामलतेजसम् ॥ १२ ॥
ददर्श लोकान्विचरन् लोकतत्त्वविवित्सया ।
वृतोऽमात्यै: कतिपयै: प्रह्रादो भगवत्प्रिय: ॥ १३ ॥
 
अनुवाद
 
  भगवान के परम प्रिय सेवक प्रह्लाद महाराज एक बार अपने कुछ विश्वस्त निकटस्थों के साथ संतों के स्वभाव का अध्ययन करने हेतु सृष्टि के भ्रमण पर निकले। इस प्रकार, वे कावेरी तट पर पहुँचे, जहाँ सह्य नामक एक पर्वत स्थित था। वहाँ उन्हें धूल-धूसरित होकर भूमि पर लेटे एक महान साधु मिले, लेकिन वे आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यधिक उन्नत थे।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.