श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 13: सिद्ध पुरुष का आचरण  »  श्लोक 10
 
 
श्लोक  7.13.10 
 
 
अव्यक्तलिङ्गो व्यक्तार्थो मनीष्युन्मत्तबालवत् ।
कविर्मूकवदात्मानं स द‍ृष्टय‍ा दर्शयेन्नृणाम् ॥ १० ॥
 
अनुवाद
 
  पुजनीय व्यक्ति मानव समाज की दृष्टि में अपना परिचय नहीं देता है लेकिन उनके व्यवहार से उनका उद्देश्य स्पष्ट हो जाता है। उन्हें मानव समाज के बीच अपने आपको एक चंचल बालक के रूप में प्रदर्शित करना चाहिए, और सर्वोत्तम विचारशील वक्ता होने के बाद भी उन्हें स्वयं को एक मूक व्यक्ति के समान प्रस्तुत करना चाहिए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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