श्री नारद मुनि ने कहा : जो व्यक्ति आध्यात्मिक ज्ञान की साधना कर सकता है उसे सारे भौतिक संबंधों का त्याग कर देना चाहिए और देह को जीवंत बनाए रखते हुए उसे हर गाँव में सिर्फ एक रात बिताते हुए एक जगह से दूसरी जगह भ्रमण करना चाहिए। इस तरह से संन्यासी को शरीर की ज़रूरतों के लिए किसी पर आश्रित हुए बिना सारे संसार में विचरण करना चाहिए।