नन्वग्नि: प्रमदा नाम घृतकुम्भसम: पुमान् ।
सुतामपि रहो जह्यादन्यदा यावदर्थकृत् ॥ ९ ॥
अनुवाद
स्त्री अग्नि के समान होती है और पुरुष घी के घड़े के समान। इसलिए पुरुष को अपनी पुत्री के साथ भी एकांत में नहीं रहना चाहिए। इसी प्रकार उसे अन्य स्त्रियों की संगति से भी बचना चाहिए। स्त्रियों से केवल आवश्यक काम के लिए ही मिलना चाहिए, अन्यथा नहीं।