मेखलाजिनवासांसि जटादण्डकमण्डलून् ।
बिभृयादुपवीतं च दर्भपाणिर्यथोदितम् ॥ ४ ॥
अनुवाद
अपने हाथ में शुद्ध कुश घास लेकर ब्रह्मचारी को नित्य प्रति मूँज की मेखला और मृगछाला का वस्त्र पहनना चाहिए। शास्त्रों में बताए अनुसार उसे जटा रखनी चाहिए, दंड धारण करना चाहिए, कमंडल रखना चाहिए, और यज्ञोपवीत धारण करना चाहिए।