श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 12: पूर्ण समाज : चार आध्यात्मिक वर्ग  »  श्लोक 31
 
 
श्लोक  7.12.31 
 
 
इत्यक्षरतयात्मानं चिन्मात्रमवशेषितम् ।
ज्ञात्वाद्वयोऽथ विरमेद् दग्धयोनिरिवानल: ॥ ३१ ॥
 
अनुवाद
 
  जब सभी भौतिक पदनाम इस तरह अपने-अपने भौतिक तत्वों में विलीन हो जाते हैं, तो जीव अंततः पूर्ण रूप से आध्यात्मिक हो जाता है और गुण में परब्रह्म के समान हो जाता है। वह इस संसार से उसी तरह विदा लेता है जिस प्रकार काठ के जल जाने पर उससे उठने वाली लपटें शांत हो जाती हैं। जब भौतिक शरीर अपने विविध भौतिक तत्वों में लौट जाता है, तो केवल आध्यात्मिक जीव बचता है। यही ब्रह्म है और यह गुण में परब्रह्म के समान है।
 
 
इस प्रकार श्रीमद् भागवतम के स्कन्ध सात के अंतर्गत बारहवाँ अध्याय समाप्त होता है ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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