श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 12: पूर्ण समाज : चार आध्यात्मिक वर्ग  »  श्लोक 26-28
 
 
श्लोक  7.12.26-28 
 
 
वाचमग्नौ सवक्तव्यामिन्द्रे शिल्पं करावपि ।
पदानि गत्या वयसि रत्योपस्थं प्रजापतौ ॥ २६ ॥
मृत्यौ पायुं विसर्गं च यथास्थानं विनिर्दिशेत् ।
दिक्षु श्रोत्रं सनादेन स्पर्शेनाध्यात्मनि त्वचम् ॥ २७ ॥
रूपाणि चक्षुषा राजन् ज्योतिष्यभिनिवेशयेत् ।
अप्सु प्रचेतसा जिह्वां घ्रेयैर्घ्राणं क्षितौ न्यसेत् ॥ २८ ॥
 
अनुवाद
 
  तत्पश्चात वाणी-विषय को वाणी की इन्द्रिय (जीभ) सहित अग्नि को समर्पित कर देना चाहिए। कारीगरी और दोनों हाथ इन्द्रदेव को समर्पित कर देना चाहिए। गति करने की शक्ति और पैर भगवान विष्णु को समर्पित कर देना चाहिए। उपस्थ सहित इंद्रिय सुख प्रजापति को सौंप देना चाहिए। गुदा को मल त्याग करने की क्रिया के साथ उसके वास्तविक स्थान मृत्यु को सौंप देना चाहिए। ध्वनि के साथ श्रवणेन्द्रिय को दिशाओं के अधिपति देवताओं को समर्पित कर देना चाहिए। स्पर्श के साथ स्पर्शेन्द्रिय वायु देव को सौंप देना चाहिए। दृष्टि सहित रूप को सूर्य को समर्पित कर देना चाहिए। वरुण देव के साथ जीभ को जल को समर्पित कर देना चाहिए। और दोनों अश्विनी कुमार देवों सहित घ्राणशक्ति को पृथ्वी को समर्पित कर देना चाहिए।
 
 
 
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