श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 12: पूर्ण समाज : चार आध्यात्मिक वर्ग  »  श्लोक 25
 
 
श्लोक  7.12.25 
 
 
खे खानि वायौ निश्वासांस्तेज:सूष्माणमात्मवान् ।
अप्स्वसृक्‍श्लेष्मपूयानि क्षितौ शेषं यथोद्भ‍वम् ॥ २५ ॥
 
अनुवाद
 
  गम्भीर, आत्म-साक्षात्कृत और ज्ञानी व्यक्ति को शरीर के अंगों को उनके मूल स्रोतों में विलीन करना चाहिए। शरीर के छिद्र आकाश से उत्पन्न होते हैं, श्वास की क्रिया वायु से उत्पन्न होती है, शरीर की ऊष्मा अग्नि से उत्पन्न होती है, और वीर्य, रक्त और कफ जल से उत्पन्न होते हैं। त्वचा, मांसपेशियां और हड्डियां जैसी कठोर वस्तुएँ पृथ्वी से उत्पन्न होती हैं। इस प्रकार, शरीर के सभी घटक विभिन्न तत्वों से उत्पन्न होते हैं, और उन्हें फिर से उन्हीं तत्वों में विलीन कर दिया जाना चाहिए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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