श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 12: पूर्ण समाज : चार आध्यात्मिक वर्ग  »  श्लोक 20
 
 
श्लोक  7.12.20 
 
 
अग्‍न्यर्थमेव शरणमुटजं वाद्रिकन्दरम् ।
श्रयेत हिमवाय्वग्निवर्षार्कातपषाट्‌स्वयम् ॥ २० ॥
 
अनुवाद
 
  एक वानप्रस्थ को पवित्र अग्नि को रखने के लिए केवल एक फूस की झोपड़ी बनानी चाहिए, या पर्वत की गुफा में शरण लेनी चाहिए। लेकिन उसे हिमपात, प्रभंजन, अग्नि, वर्षा और सूर्य की गर्मी को सहन करने का अभ्यास करना चाहिए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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