न कृष्टपच्यमश्नीयादकृष्टं चाप्यकालत: ।
अग्निपक्वमथामं वा अर्कपक्वमुताहरेत् ॥ १८ ॥
अनुवाद
वानप्रस्थ आश्रम में रहने वाले को जुती हुई भूमि में उगा अन्न नहीं खाना चाहिए। उसे बिना जुती भूमि में उगे वे अनाज भी नहीं खाने चाहिए जो पूरी तरह पके न हों। न ही वानप्रस्थ को आग में पका अन्न खाना चाहिए। निस्संदेह, उसे सूर्य के प्रकाश में पके फल ही खाने चाहिए।