एवं विधो ब्रह्मचारी वानप्रस्थो यतिर्गृही ।
चरन्विदितविज्ञान: परं ब्रह्माधिगच्छति ॥ १६ ॥
अनुवाद
इस प्रकार नियमित रूप से अभ्यास करते हुए व्यक्ति चाहे ब्रह्मचारी आश्रम में रहे, गृहस्थ आश्रम में हो, वानप्रस्थ या संन्यास आश्रम में हो, उसे सृष्टि में परमेश्वर की व्याप्ति का एहसास कराना चाहिए। ऐसा करने से वह परम सत्य का अनुभव कर सकता है।