अग्नौ गुरावात्मनि च सर्वभूतेष्वधोक्षजम् ।
भूतै: स्वधामभि: पश्येदप्रविष्टं प्रविष्टवत् ॥ १५ ॥
अनुवाद
किसी भी प्राणी को यह समझ लेना चाहिए कि भगवान विष्णु अग्नि में, गुरु में, स्वयं में तथा समस्त जीवों में प्रत्येक स्थिति और परिस्थिति में होते हुए भी नहीं होते हैं। वे पूर्ण नियामक रूप में प्रत्येक वस्तु के अंदर और बाहर होते हैं।