श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 12: पूर्ण समाज : चार आध्यात्मिक वर्ग  »  श्लोक 13-14
 
 
श्लोक  7.12.13-14 
 
 
उषित्वैवं गुरुकुले द्विजोऽधीत्यावबुध्य च ।
त्रयीं साङ्गोपनिषदं यावदर्थं यथाबलम् ॥ १३ ॥
दत्त्वा वरमनुज्ञातो गुरो: कामं यदीश्वर: ।
गृहं वनं वा प्रविशेत्प्रव्रजेत्तत्र वा वसेत् ॥ १४ ॥
 
अनुवाद
 
  उपरोक्त विधि-विधानों के अनुसार द्विज, अर्थात् ब्राह्मण, क्षत्रिय या वैश्य को गुरु की देखरेख में गुरुकुल में रहना चाहिए। वहाँ उसे अपनी क्षमता और शक्ति के अनुसार वेदों, वेदांगों और उपनिषदों का अध्ययन करना चाहिए। यदि संभव हो तो शिष्य को चाहिए कि वह गुरु को दक्षिणा दे और फिर गुरु के आदेशानुसार गुरुकुल छोड़ दे और अपनी इच्छा से गृहस्थ, वानप्रस्थ या संन्यास आश्रम को स्वीकार कर ले।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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