श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 12: पूर्ण समाज : चार आध्यात्मिक वर्ग  »  श्लोक 1
 
 
श्लोक  7.12.1 
 
 
श्रीनारद उवाच
ब्रह्मचारी गुरुकुले वसन्दान्तो गुरोर्हितम् ।
आचरन्दासवन्नीचो गुरौ सुद‍ृढसौहृद: ॥ १ ॥
 
अनुवाद
 
  नारद मुनि कहै : विद्यार्थी को चाहिए कि वह अपनी इंद्रियों पर संयम रखने की कोशिश करे। उसे विनम्र होना चाहिए और गुरु से गहरी दोस्ती रखनी चाहिए। ब्रह्मचारी को महान संकल्प लेकर गुरुकुल में इसलिए रहना चाहिए ताकि गुरु को लाभ हो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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