श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 11: पूर्ण समाज: चातुर्वर्ण  »  श्लोक 32
 
 
श्लोक  7.11.32 
 
 
वृत्त्या स्वभावकृतया वर्तमान: स्वकर्मकृत् ।
हित्वा स्वभावजं कर्म शनैर्निर्गुणतामियात् ॥ ३२ ॥
 
अनुवाद
 
  यदि कोई अपने स्वभाव के अनुसार अपने पेशे में काम करता है और धीरे-धीरे उन कामों को त्याग देता है, तो उसे निष्काम अवस्था प्राप्त हो जाती है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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