प्राय: स्वभावविहितो नृणां धर्मो युगे युगे ।
वेददृग्भि: स्मृतो राजन्प्रेत्य चेह च शर्मकृत् ॥ ३१ ॥
अनुवाद
हे राजा, वेदों के ज्ञान में प्रवीण ब्राह्मणों का यह मत है कि हर युग में अपने भौतिक गुणों के अनुसार अलग-अलग वर्णों के लोगों का आचरण इस जीवन और उसके बाद भी शुभ होता है।