या पतिं हरिभावेन भजेत् श्रीरिव तत्परा ।
हर्यात्मना हरेर्लोके पत्या श्रीरिव मोदते ॥ २९ ॥
अनुवाद
जो स्त्री लक्ष्मी जी के पदचिन्हों पर आत्म समर्पण के साथ अपने पति की सेवा करती है, वह निश्चित रूप से अपने भक्त पति के साथ भगवद्धाम वापस जाती है और वैकुण्ठलोक में अत्यन्त सुखपूर्वक रहती है।