श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 11: पूर्ण समाज: चातुर्वर्ण  »  श्लोक 28
 
 
श्लोक  7.11.28 
 
 
सन्तुष्टालोलुपा दक्षा धर्मज्ञा प्रियसत्यवाक् ।
अप्रमत्ता शुचि: स्‍निग्धा पतिं त्वपतितं भजेत् ॥ २८ ॥
 
अनुवाद
 
  साध्वी स्त्री को स्वार्थी नहीं होना चाहिए, बल्कि उसे हर परिस्थिति में संतुष्ट रहना चाहिए। उसे घर के काम-काज में कुशल होना चाहिए और धार्मिक सिद्धांतों से भली-भांति परिचित होना चाहिए। उसे मधुर और सत्य बोलना चाहिए, सावधान रहना चाहिए और हमेशा शुद्ध और पवित्र रहना चाहिए। इस प्रकार एक साध्वी स्त्री को अपने पति की, जो कि पतित नहीं है, प्रेमपूर्वक सेवा करनी चाहिए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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