शूद्रस्य सन्नति: शौचं सेवा स्वामिन्यमायया ।
अमन्त्रयज्ञो ह्यस्तेयं सत्यं गोविप्ररक्षणम् ॥ २४ ॥
अनुवाद
समाज के उच्च वर्गों (ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य) को नमन करना, हमेशा साफ-सुथरा रहना, दोगलापन से रहित रहना, अपने स्वामी की सेवा करना, मंत्रों का उच्चारण किए बिना यज्ञ करना, चोरी न करना, हमेशा सच बोलना और गायों और ब्राह्मणों को हमेशा सुरक्षा प्रदान करना - ये शूद्र के लक्षण हैं।