श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 11: पूर्ण समाज: चातुर्वर्ण  »  श्लोक 16
 
 
श्लोक  7.11.16 
 
 
वार्ता विचित्रा शालीनयायावरशिलोञ्छनम् ।
विप्रवृत्तिश्चतुर्धेयं श्रेयसी चोत्तरोत्तरा ॥ १६ ॥
 
अनुवाद
 
  वैकल्पिक रूप से, ब्राह्मण वैश्य की कृषि, गोरक्षा या व्यापार की वृत्ति कर सकता है। जो कुछ माँगे बिना मिल जाये, उस पर आश्रित रह सकता है, वह प्रति दिन धान के खेत में भिक्षा माँग सकता है, वह स्वामी द्वारा खेत में छोड़े गये थोड़े से अन्न को एकत्र कर सकता है या अन्न के व्यापारियों की दूकान में पिछले गिरे हुए अन्न को इकट्ठा कर सकता है। जीविका के ये चार साधन हैं जिन्हें ब्राह्मण भी अपना सकते हैं। इन चारों में से प्रत्येक साधन पिछले साधन से बेहतर है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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