श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 10: भक्त शिरोमणि प्रह्लाद  »  श्लोक 67
 
 
श्लोक  7.10.67 
 
 
शरं धनुषि सन्धाय मुहूर्तेऽभिजितीश्वर: ।
ददाह तेन दुर्भेद्या हरोऽथ त्रिपुरो नृप ॥ ६७ ॥
 
अनुवाद
 
  हे राजन युधिष्ठिर, परम शक्तिशाली शिवजी ने अपने धनुष पर बाण रखकर दोपहर के समय ही असुरों के तीनों वास स्थानों को जलाकर नष्ट कर दिया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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